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यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ऽइद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑। य ईशे॑ऽअ॒स्य द्वि॒पद॒श्चतु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। प्रा॒ण॒तः। नि॒मि॒ष॒त इति॑ निऽमिष॒तः। म॒हि॒त्वेति॑ महि॒ऽत्वा। एकः॑। इत्। राजा॑। जग॑तः। ब॒भूव॑। यः। ईशे॑। अ॒स्य। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदः॑। चतु॑ष्पदः। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑ऽपदः। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:25» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (यः) जो सूर्य (प्राणतः) श्वास लेते हुए प्राणी और (निमिषतः) चेष्टा करते हुए (जगतः) संसार का (महित्वा) बड़ेपन से (एकः) असहाय एक (इत्) ही (राजा) प्रकाश करनेवाला (बभूव) होता है (यः) तथा जो (अस्य) इस (द्विपदः) दो-दो पगवाले मनुष्यादि और (चतुष्पदः) चार-चार पगवाले गौ आदि पशुरूप जगत् का (ईशे) प्रकाश करता है, उस (कस्मै) सुख करने हारे (देवाय) प्रकाशक जगदीश्वर के लिये (हविषा) ग्रहण करने योग्य पदार्थ वा व्यवहार से (विधेम) सेवन करें, वैसे तुम लोग भी अनुष्ठान किया करो ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य न हो तो स्थावर वृक्ष आदि और जङ्गम मनुष्यादि जगत् अपना-अपना काम देने को समर्थ न हो। जो सब से बड़ा, सब का प्रकाश करनेवाला और ऐश्वर्य की प्राप्ति का हेतु है, वह ईश्वर सब को युक्ति के साथ सेवने योग्य है ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यः) सूर्यः (प्राणतः) प्राणिनः (निमिषतः) चेष्टां कुर्वतः (महित्वा) महत्त्वेन (एकः) असहायः (इत्) एव (राजा) प्रकाशकः (जगतः) संसारस्य (बभूव) भवति (यः) (ईशे) ऐश्वर्यं करोति (अस्य) (द्विपदः) द्वौ पादौ यस्य तस्य मनुष्यादेः (चतुष्पदः) चत्वारः पादा यस्य गवादेस्तस्य (कस्मै) सुखकारकाय (देवाय) दीपकाय (हविषा) आदानेन (विधेम) सेवेमहि ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं यः प्राणतो निमिषतो जगतो महित्वैक इद्राजा बभूव। योऽस्य द्विपदश्चतुष्पद ईशे तस्मै कस्मै देवाय हविषा विधेम तथा यूयमप्यनुतिष्ठत ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि सूर्यो न स्यात्तर्हि स्थावरं जङ्गमं च जगत् स्वकार्यं कर्त्तुमसमर्थं स्यात्। यः सर्वेभ्यो महान् सर्वेषां प्रकाशक ऐश्वर्यप्राप्तिहेतुरस्ति स सर्वैर्युक्त्या सेवनीयः ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर सूर्य नसता तर स्थावर वृक्ष वगैरे व जंगम (चलायमान) मनुष्य वगैरे आपापले काम करण्यास समर्थ ठरले नसते. जो सर्वांत मोठा व सर्वांना प्रकाश देणारा, ऐश्वर्यप्राप्ती करून देणारा असा ईश्वरच आहे, त्याची उपासना सर्वांनी युक्तीने करावी.